S.P.MITTAL
अजमेर में जब मेडिकल कॉलेज की स्थापना हुई, तब श्रीमती इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं, इसलिए अजमेर के मेडिकल कॉलेज का नाम भी उनके पिता जवाहर लाल नेहरू के नाम पर रखा गया। देश के अधिकांश सरकारी प्रतिष्ठानों के नाम जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी के नाम पर रखे हुए हैं। इसका कारण यही है कि देश में 55 वर्षों तक कांग्रेस पार्टी का ही राज रहा। इसकी वजह से सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभ भाई पटेल, सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद जैसे प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों को उनका जायज सम्मान नहीं मिल सका है। लेकिन अब सुभाष चंद्र बोस को उनका जायजा सम्मान दिलाने की कोशिश हो रही है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान नेताजी सुभाष चंद्र बोस का कितना महत्व था, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि जवाहर लाल नेहरू के मुकाबले में सुभाष बाबू को कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। इतिहासकारों के अनुसार सुभाष बाबू महात्मा गांधी की मर्जी के खिलाफ अध्यक्ष बने। यही वजह रही कि महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू का सहयोग सुभाष बाबू को नहीं मिला। इतिहासकार मानते हैं कि यदि उस समय सुभाष बाबू को कांग्रेस संगठन और स्वतंत्रता आंदोलन को चलाने का अवसर मिलता तो 1947 में देश का विभाजन नहीं होता। चूंकि गांधी जी और नेहरू जी ने सहयोग नहीं किया। इसलिए सुभाष बाबू को देश छोड़कर जाना पड़ा। विदेश में रह कर सुभाष बाबू ने 21 अक्टूबर 1943 को भारत की पहली स्वाधीन सरकार बनाई। इस सरकार को 11 देशों की मान्यता भी मिल गई। इससे सुभाष बाबू के अंतर्राष्ट्रीय महत्व को समझा जा सकता है। लेकिन आजादी के बाद सुभाष बाबू को उचित सम्मान नहीं दिया गया और न ही उनके योगदान के बारे में युवा पीढ़ी को बताया गया। जिन नेताओं ने सुभाष बाबू को देश छोड़ने के लिए मजबूर किया, उन्हीं के हाथों में सत्ता रही, इसलिए अजमेर तक मेडिकल कॉलेज का नाम अपने परिवार के सदस्यों के नाम पर ही रखा गया। लेकिन अब देश की राजधानी दिल्ली के ऐतिहासिक इंडिया गेट पर सुभाष बाबू की प्रतिमा उस स्थान पर लगेगी, जहां अंग्रेजों के शासन में उनके राजा जॉर्ज पंचम की प्रतिमा लगाई गई थी। सुभाष बाबू की प्रतिमा को इंडिया गेट पर लगाने का पूरा हक है, क्यों सुभाष बाबू जैसे क्रांतिकारियों के कारण ही अंग्रेजों को भारत से जाना पड़ा। कांग्रेस के कुछ नेताओं की तरह अंग्रेज भी चाहते थे कि सुभाष बाबू भारत से चले जाएं। यदि सुभाष बाबू की दमदार उपस्थिति भारत में होती तो देश का विभाजन नहीं होता। सवाल यह नहीं है कि मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इंडिया गेट पर सुभाष बाबू की प्रतिमा लगवा रहे हैं, अहम बात यह है कि मौजूदा दौर में उन स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मान मिल रहा है, जिन्हें राजनीति के चलते उनके जायज सम्मान से वंचित किया गया था। दिल्ली का इंडिया गेट एक पर्यटन स्थल भी है। यहां पर प्रतिमा लगने से देश विदेश के पर्यटक सुभाष बाबू के बारे में भी जान सकेंगे। केंद्र सरकार को चाहिए कि सुभाष बाबू के जीवन की जिन घटनाओं को अब तक छिपा कर रखा गया उन सभी को सार्वजनिक कियाजाए। ताकि देश दुनिया सुभाष बाबू की सोच और मेहनत के बारे में जान सके। भारत को और मजबूत स्थिति में लाने के लिए सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभ भाई पटेल, सरदार भगत सिंह जैसे राष्ट्रभक्त लोगों के विचारों की क्रियान्विति करने की जरूरत है। इंडिया गेट पर सुभाष बाबू की प्रतिमा लगाने के निर्णय का देशवासियों को स्वागत करना चाहिए।