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संवेदनशील अभिनय की प्रतिमूर्ति है वहीदा रहमान

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हेमन्त शुक्ल (वरिष्ठ पत्रकार व फिल्म समीक्षक)

देवानंद के सौंवें जन्मदिन पर वहीदा रहमान को फिल्म इंडस्ट्री का सर्वोच्च सम्मान “दादा साहेब फाल्के पुरस्कार” देने की घोषणा हुई

सिने प्रेमियों को जिस खुशी की प्रतीक्षा थी वह काफी इंतजार के बाद पूरी हुई और यह प्रतीक्षा थी दादा साहब फाल्के पुरस्कार पाने की जो वहीदा रहमान को दिया जाएगा। पिछले साल यह पुरस्कार इनके साथ की अभिनेत्री आशा पारेख को दिया गया था, इसके बाद से ही वहीदा रहमान को यह अवार्ड देने की प्रतीक्षा सिने प्रेमियों में की जा रही थी। खुशी की बात यह है कि वहीदा को यह अवार्ड देने की घोषणा ऐसे दिन हुई जब सदाबहार अभिनेता देवानंद का सौवां जन्मदिन था। गाइड, प्रेम पुजारी जैसी फिल्मों में उनके साथ काम कर चुकी वहीदा रहमान ने कहा- यह मेरे लिए दोहरी खुशी का मौका है।
सिने जगत का यह सर्वोच्च सम्मान “दादा साहब फाल्के लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड” 85 वर्षीया वहीदा रहमान को अब दिया जाएगा। वहीदा रहमान ने प्यासा, कागज के फूल, चौदहवीं का चांद, साहब बीवी और गुलाम, गाइड, खामोशी जैसी फिल्मों में संवेदनशील अभिनय से अलग मुकाम हासिल किया है। उन्हें फिल्म रेश्मा और शेरा के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी दिया जा चुका है। तीन फिल्मफेयर अवार्ड से सम्मानित वहीदा रहमान को 1972 में पद्मश्री और 2011 में पद्मभूषण से भी नवाजा जा चुका है।
वहीदा रहमान को वर्ष 2021 के इस सम्मान को देने की घोषणा केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बधाई देते हुए एक्स पर लिखा “वहीदा रहमान प्रतिभा, समर्पण और शालीनता की प्रतीक व हमारी सर्वश्रेष्ठ सिनेमाई विरासत का अहम हिस्सा हैं।

पटकथा लेखक अबरार अल्वी जो कि गुरुदत्त के अच्छे मित्र और गुरुदत्त की कई फिल्मों के लेखक भी थे, ने मशहूर लेखक सत्यसरन की पुस्तक “टेन ईयर्स विद गुरुदत्त” में बताया था कि वहीदा रहमान को गुरुदत्त ने हीं फिल्मों में इंट्रोड्यूस कराया। उनके बताए अनुसार वहीदा रहमान उस समय हैदराबाद में एक उभरती हुई कलाकार थी और दक्षिण की फिल्मों में हाथ-पांव मार रही थी। हुआ यूं था कि गुरुदत्त तमिल की हिट फिल्म मिसिअम्मा का हिंदी में रीमेक बनाने की तलाश में लेखक अबरार अल्वी के साथ हैदराबाद पहुंचे थे। वह दोनों एक दिन कार से कहीं जा रहे थे कि एक भैंस के कार से टकरा जाने से क्षतिग्रस्त कार को बनवाने के लिए कुछ दिन रुकना पड़ा और इसी दौरान उनकी भेंट वहीदा रहमान से हुई जो किसी ऑडिशन के लिए वहीं आयी हुई थी। गुरुदत्त ने फिल्म सीआईडी के जरिए ही वहीदा का परिचय हिंदी दर्शकों से कराया। इस फिल्म का निर्देशन राज खोसला ने किया था। यह पहली बार था जब रहमान और देवानंद स्क्रीन पर एक साथ नजर आए थै। दोनों ने बाद में भी फिल्म चौदहवीं का चांद में और काला बाजार में भी साथ-साथ काम किया था। रहमान तो एक बार फिर फिल्म साहब बीवी और गुलाम में वहीदा के साथ एक नायाब भूमिका में नजर आए थे। फिल्म सभी कलाकारों के उत्कृष्ट स्वाभाविक अभिनय से सजी हुई थी और हिट भी हुई। इसके गाने भी इस कदर मकबूल हुए कि आज भी पुरानी फिल्मों के गीतों के शौकीनों के जुबान पर अपने आप उभर आते हैं। गुरु दत्त ने महज 8 फिल्मों का निर्देशन किया था लेकिन उनकी सभी फिल्में भारत की सबसे बेहतरीन फिल्मों में से गिनी जाती हैं। उनकी फिल्म प्यासा को दुनिया की सबसे बेहतरीन फिल्मों में शुमार किया जाता है। इसके अलावा कागज के फूल, चौदहवीं का चांद और साहब बीवी गुलाम भी बेहतरीन फिल्में रहीं जिनमें वहीदा रहमान ने भी अपनी अभिनय प्रतिभा दिखाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी।

वहीदा रहमान के अभिनय की बारीकी पर ध्यान दें तो लगभग सभी रोल में उनके चेहरे और आंखों में कुछ ऐसा दिखता था जिससे उनकी शख्सियत पर हमेशा ही एक चमक भरा पर्दा महसूस होता था। वह अपनी पहली फिल्म सीआईडी में कैमरे के सामने थोड़ा बहुत और सचेत तो दिखती थीं मगर एक रहस्यमय किरदार को उन्होंने गजब ढंग से निभाया था। फिल्म के हर फ्रेम में वह देवानंद के साथ पूरी तरह आत्मविश्वास से भरी नजर आती हैं। ऐसे ही अगर देखे तो कोहरा के गानों के छायांकन के समय एक साथ उनके चेहरे पर चमक और अवसाद के साथ ही प्रेम और संशय भी झलकता है। इस फिल्म के गीतों के फिल्मांकन में जैसे-जैसे छवियां आगे बढ़ती हैं वैसे-वैसे वहीदा रहमान की भूमिका अपने आप दर्शकों के दिल में समाने लगती है।
उनकी लगभग हर फिल्म को देखें तो गाइड की हीरोइन, मुझे जीने दो की चमेली, चौदहवीं का चांद या फिर पालकी की मासूम सी प्रेमिका, कोहरा की रहस्यमय भूमिका, दिल दिया दर्द लिया,पत्थर के सनम, राम और श्याम, नील कमल की मजबूर पात्रा के अलावा तीसरी कसम की नौटंकी वाली नायिका हीरा बाई जैसा अभिनय फिर कहीं और तलाशना पड़ता है।
तीसरी कसम की बात चली है तो जब यह फिल्म बनने की तैयारी में थी तब सांताक्रुज ईस्ट की छठवीं गली के बापूजी निवास वाले बंगले में इस फिल्म के कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु भी आए हुए थे। क्योंकि रेणु साहित्यकार थे और और साहित्य जगत में एक प्रमुख आंचलिक उपन्यासकार व लेखक के रूप में जाने जाते थे तो उस समय उनसे मिलने फिल्म जगत के तमाम लोग शैलेंद्र के लेखकीय आवास पर इकट्ठा होते थे और चर्चा में हिस्सा लेते थे। एक दिन इसकी चर्चा जब वहां की बैठकी में हुई तो बासु भट्टाचार्य ने जो कि तीसरी कसम के निर्देशक तय हो चुके थे, ने कहा रेणु तो एकदम गंवार आदमी है, जिस लड़की को देखता है तो हीराबाई का रोल देने की सोचता है। खैर उस समय सभी मौन हो गए थे क्योंकि तीसरी कसम के निर्देश के रूप में बासु दा तय हो चुके थे और हीरोइन वहीदा रहमान।

वहीदा रहमान की प्रमुख फिल्में
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सीआईडी (1956), प्यासा (1957), सोलहवां साल, ट्वेल्व ओ’ क्लॉक (1958), जय सिंह (1959), कागज के फूल, एक फूल चार कांटे, काला बाजार, गर्ल फ्रेंड, चौदहवीं का चांद, (1960), रूप की रानी चोरों का राजा (1961), बीस साल बाद, बात एक रात की, राखी, साहब बीवी और गुलाम (1962), कौन अपना कौन पराया, एक दिल सौ अफसाने, मुझे जीने दो (1963), मजबूर, शगुन, कोहरा (1964), गाइड (1965), दिल दिया दर्द लिया, तीसरी कसम (1966), पालकी, पत्थर के सनम, राम और श्याम, घर का चिराग (1967), आदमी, बाजी, नीलकमल (1968), खामोशी, मेरी भाभी, शतरंज (1969), धरती, मन की आंखें, दर्पण (1970), मन मंदिर, रेशमा और शेरा (1971), सुबह ओ शाम, जिंदगी जिंदगी (1972), फागुन (1973), प्यासी शाम, प्रेम पुजारी (1974), अदालत (1976), त्रिशूल (1978), कभी-कभी, ज्योति बने ज्वाला, आज की धारा (1979), ज्वालामुखी (1980), नमक हलाल, धरम कांटा, नमकीन, सवाल (1982), कुली, घुंघरू, हिम्मतवाला, महान (1983), मशाल, मकसद, सन्नी (1984), सिंहासन (1989), लम्हे (1992)।

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