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श्रीमनकामेश्वर मंदिर को दीपों से सजाया गया महंत देव्यागिरी ने मंदिर में घ्वजाएं वितरित की

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नवसंवत्सर के स्वागत में श्रीमनकामेश्वर मंदिर को दीपों से सजाया गया
महंत देव्यागिरी ने मंदिर में घ्वजाएं वितरित की, कहा कि भारतीय संस्कृति से इसी तिथि से नववर्ष मनाना चाहिए
लखनऊ, 22 मार्च । चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, बुधवार से आरम्भ हुए नवसंवत्सर के आगमन की खुशी चहुंओर बिखरी बिखरी हुई है। इस अवसर पर लखनऊ में आदिगंगा गोमती के तट पर स्थित प्राचीन श्रीमनकामेश्वर मठ- मंदिर को दीपों से भव्य रूप से सजाया गया। फुल-मालाएं भी लगाई गई। इस अवसर पर मंदिर की श्रीमहंत देव्यागिरी ने लोगों को दर्जनों ध्वजाएं भी वितरित की।
नवसंवत्सर के स्वागत को लेकर डालीगंज स्थित श्रीमनकामेश्वर में सुबह से ही तैयारियां शुरू हो गई थीं। मंदिर की मुख्यकर्ता उपमा पाण्डेय के नेतृत्व में अन्य कार्यकताओं ने दीप सजाए। मंदिर के प्रांगण में रंगोली सजाई। शाम होते ही दीपों को प्रज्वलित कर दिया। दीपक की आभा से मंदिर जगमगा उठ। मंदिर में आने वाले भक्त इस उत्सव में शामिल हुए।
इस अवसर पर मंदिर की श्रीमहंत ने बताया कि हमारी भारतीय संस्कृति में चैत्र की महीने की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवसंवत्सर और नववर्ष की शुरूआत मानी जाती है। यह बड़ी पावन तिथियों में से एक है। इस तिथि का पौराणिक महत्व भी है। माना जाता है कि इस तिथि से भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि निर्माण प्रारम्भ किया था। सत्ययुग का आरंम्भ भी इसी तिथि से हुआ था। ऐतिहासिक महत्व की दृष्टि से देखा जाय तो सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने इस दिन से विक्रम संवत् आरम्भ किया था।
इस दिन सभी श्रद्धालुओं अपने घरों के बाहर कम से कम एक दीप जरूर प्रज्जवलित करेें और झंडे भी लगाए। श्रीमहंत ने बताया कि एक जनवरी को जो नया साल मनाया जाता है, वह हमारी संस्कृति का नहीं है, वह पाशचात्य सभ्यता से आया है। हम किसी की संस्कृति की बुराई नहीं करते हैं, लेकिन भारत देश में रहते हुए हमे अपनी भारतीय जो संस्कृति है, उसे ही अपनाना चाहिए।

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