यादों के झरोखे से :-
75 वर्षों से फिल्मी दुनिया में जगमगा रही हैं कामिनी कौशल
हेमन्त शुक्ल (वरिष्ठ पत्रकार व फिल्म समीक्षक)
छानबे वर्ष की उम्र और 75 साल तक फिल्मों में काम करना और आज भी फिल्मी दुनिया से जुड़े रहना कोई कम उपलब्धि नहीं कही जा सकती। 1945 से फिल्मों में अभिनय कर चुकीं कामिनी कौशल आज 96 वर्ष की हो गयी हैं और अब भी फिल्मी गतिविधियों से जुड़ी हुई हैं। यह भी एक चिन्ता का विषय हो सकता है कि अभी तक उनको अनदेखा क्यों रखा गया? भारतीय सिनेमा की यह दिग्गज अभिनेत्री जहां अपने जीवन के 96वें वर्ष में प्रवेश कर चुकी हैं. वहीं उन्हें फिल्मों में काम करते हुए भी पूरे 75 साल हो गए हैं। फिल्मों में इतनी लम्बी पारी खेलने का भी यह एक रिकॉर्ड ही है। देखा जा चुका है कि ज्यादातर अभिनेत्रियां पहले तो इतनी उम्र तक पहुंच ही नहीं पातीं, यदि कोई पहुंच भी गयी तो वह तब तक फिल्मों से दूर हो चुकी होती हैं, लेकिन कामिनी कौशल ने 1945 से जो हिन्दी फिल्मों में अपना फिल्मी सफर शुरू किया वह अभी थमा नहीं । 16 जनवरी 1927 में लाहौर में जन्मी देहरादून के संभ्रान्त परिवार से ताल्लुक रखने वाली और लखनऊ के आईटी कॉलेज की छात्रा रह चुकी कामिनी कौशल का वास्तविक नाम उमा कश्यप है जो प्रोफेसर शिवराम कश्यप “वनस्पति शास्त्री” की पुत्री रहीं। उन्होंने चेतन आनन्द की फिल्म नीचा नगर (1946) से अपना फ़िल्मी जीवन शुरू किया। उनकी पहली फिल्म
‘नीचा नगर’ का प्रथम प्रदर्शन 29 सितम्बर 1946 को फ्रांस के प्रसिद्ध कान अन्तरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में किया गया तो यह फिल्म काफी पसन्द की ही गयी और उसी समारोह में पुरस्कृत भी की गयी। इससे देश की यह पहली फिल्म बन गयी जो अन्तरराष्ट्रीय मंच पर सम्मानित हुई। इसके बाद कामिनी कौशल भी सुर्खियों में आ गयीं। उनके अभिनय और उनकी सुन्दरता से तब के कई फ़िल्मकार प्रभावित हो गए।
कामिनी कौशल ने ‘नीचा नगर’ के बाद कई शानदार फिल्में कीं जिनमें गोदान(1963) का नाम भी शामिल हैं। इस समय की फिल्मों में कामिनी कौशल ने अपने दौर के लगभग सभी नायकों के साथ काम किया जिनमें दिलीप कुमार, अशोक कुमार, राज कपूर और देवानन्द जैसे दिग्गज भी थे। फिल्म नीचा नगर के बाद 1947 में बनी फिल्म जेल यात्रा में कामिनी के नायक राज कपूर थे जिनकी बतौर निर्माता-निर्देशक पहली फिल्म आग (1948) में भी एक अहम् भूमिका निभायी थी। इससे पहले की दो फिल्में जिनमें पहली- दो भाई(1947), में नायक उल्हास थे। यह फिल्मिस्तान स्टूडियो की फिल्म थी, जबकि दूसरी फिल्म नदिया के पार व शहीद (1948) में भी उन्होंने काम किया तथा फिल्म जगत में पहचानी जाने लगीं। फिल्म नदिया के पार के हीरो दिलीप कुमार थे जिसके गीत उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के निवासी मोती बीए ने लिखे थे। वो सारे गाने खूब सुने गए जिनमें भोजपुरी के भरपूर पुट हैं। इसके अलावा अगले 10 वर्षों में कामिनी कौशल ने नमूना, शबनम, शायर (1949), आरजू (1950), बिखरे मोती (1951), पूनम (1952), आंसू, आस, शहंशाह (1953), बिराज बहू, चालीस बाबा एक चोर, संगम (1954), आबरू (1956), बड़ा भाई, बड़े सरकार (1957), जेलर, नाइट क्लब (1958) और बैंक मैनेजर (1959) जैसी कुल मिलाकर 33 फिल्मों में मुख्य भूमिका निभायी।
नायिका के रूप में कई अच्छी और सफल फिल्में करने के बाद जब उन्होंने चरित्र भूमिकाएं करनी शुरू कीं तो उन्हें उसमें भी अच्छी सफलता मिली। अभिनेता मनोज कुमार ने तो उनको अपनी अधिकतर फिल्मों में अपने साथ लिया जिनमें उनकी निर्मित-निर्देशित फिल्में उपकार(1967), पूरब और पश्चिम(1970), शोर(1972), रोटी कपड़ा और मकान(1974), संतोष(1989) हों, उन्होंने मनोज कुमार की मां का रोल निभाया। इसके अलावा 2007 में बनी फिल्म लागा चुनरी में दाग, 2008 में लंदन में बनी उनकी एक अंग्रेजी फिल्म द स्क्वायर रूट टू और 2013 में रोहित शेट्टी की फिल्म ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ में भी कामिनी ने शाहरुख खान की दादी का चरित्र निभाया था। इसके बाद 2019 में प्रदर्शित फिल्म कबीर सिंह में भी कामिनी कौशल शाहिद कपूर की दादी बनकर आयीं।
प्रसिद्ध फिल्म पत्रकार व समीक्षक प्रदीप सरदाना के अनुसार कामिनी कौशल शिक्षक बनना चाहती थीं। उन्होंने अपने एक साक्षात्कार में बताया था कि वह रेडियो नाटक और अन्य रचनात्मक कार्य तो करना चाहती थीं लेकिन फिल्मों में काम करने का उनका कोई इरादा नहीं था क्योंकि वह खुद एक टीचर बनना चाहती थीं जबकि उनके भाई चाहते थे कि वह एक डॉक्टर बनें लेकिन नियति ने उन्हें एक कलाकार ही नहीं बल्कि मशहूर अभिनेत्री ही बना दिया। अपनी लोकप्रियता के उस समय में कामिनी कौशल ने अफवाहों की मार भी झेली थी जिसमें दिलीप कुमार के साथ उनका नाम जोड़ा गया था। तब की फिल्मी पत्रिकाओं, खासतौर पर दिल्ली की पत्रिकाओं में उन दोनों के प्रेम प्रसंग के किस्से खूब छपते थे और ऐसी खबरों के कारण ही एक बार कामिनी कौशल का घर टूटते-टूटते बचा था। इसका कारण यह भी था कि अपनी बड़ी बहन की अचानक मृत्यु के बाद जीजा ब्रह्मस्वरूप की वह व्याहता हो चुकी थीं।
कामिनी कौशल के फिल्मी करिअर में यूं तो कई शानदार फिल्में हैं, जिनमें उपहार(1991), दो रास्ते(1969), हीर राँझा(1970), इश्क़ पर ज़ोर नहीं(1970), अनहोनी(1973), प्रेम नगर(1974), अपने रंग हज़ार(1975), स्वर्ग नर्क(1978) आदि का नाम गिनाया जा सकता है, लेकिन ‘बिराज बहू’ को उनकी बेहतरीन फिल्म कहा जाता है। इस फिल्म के लिए कामिनी कौशल को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार भी दिया गया था जिसका निर्देशन बिमल राय सरीखे निर्देशक ने किया था। यह फिल्म शरत् चंद्र के उपन्यास ‘बिराज बहू’ पर आधारित थी जिसमें नायिका बिराज की जिन्दगी की दु:ख भरी कहानी सभी को झकझोर देती है। कामिनी कौशल ने एक बार बताया था-‘’ मैंने बिराज के चरित्र को आत्मसात करने के लिए ‘बिराज बहू’ उपन्यास को 22 बार पढ़ा था।
ऐसी स्वीकारोक्ति से ही कहा जा सकता है कि किरदार के लिए ऐसे ही मेहनत से तलाशे गए भावपूर्ण अभिनय से भरी कामिनी कौशल की लगभग सभी फिल्में ही हैं जो उनके बेहतरीन अभिनय की गवाही देती हैं।
वृद्धावस्था के इस मोड़ पर मुम्बई में श्रवण, राहुल और विदुर नाम की सन्तानों के परिवार के साथ रहते हुए इस वरिष्ठ अभिनेत्री का समय बच्चों की एक संस्था के लिए कहानियां लिखने, तरह-तरह की गुड़िया बनाने और कलाकारों की की संस्थाओं की बागडोर सम्हालने में बीतता है। ईश्वर उन्हें और उम्र दें… आमीन ।