लखनऊ , 29 सितम्बर 2022। पैसा, शोहरत और वस्तुओं के आगे अपने माता- पिता को प्राथमिकता देना महत्वपूर्ण है। माता-पिता के प्यार को पैसों से ना तौलें, क्योंकि मुश्किल समय में वही बच्चों का मनोबल बढ़ाते हैं और उनका हर हाल में साथ देते हैं। हर माता-पिता अपने बच्चे की अच्छी सी अच्छी परवरिश करते हैं, उसके लिए वह बहुत सारी कुर्बानियां भी देते हैं। बच्चों को इस बात का एहसास होना चाहिए कि अपने मां-बाप के त्याग को याद रखते हुए बुढ़ापे में हमेशा उनका साथ दें, उनका आदर- सम्मान करें न कि उनको बोझ समझें। कुछ ऐसा ही संदेश दिया नाटक ‘ कालचक्र ‘ ने, जिसका आज शाम सन्त गाडगे जी महाराज प्रेक्षागृह में भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय, संस्कृति विभाग नई दिल्ली के सहयोग से आजादी के अमृत महोत्सव के अन्तर्गत आकांक्षा थियेटर आर्टस द्वारा मंंचन किया गया।
हास्य कलाकार स्व. राजू श्रीवास्तव की स्मृति में जयंत दलवी के मूल नाट्य का दामोदर खड़से के अनुवाद और प्रभात कुमार बोस के निर्देशन में मंचित नाटक ‘ कालचक्र ‘ की कथावस्तु के अनुसार वी वी ईनामदार नाम के एक वृध्द दम्पत्ति हैं जो की वृध्दावस्था के कारण मधुमेह नाम की बीमारी से पीड़ित रहते हैं। उनका बड़ा बेटा विश्वनाथ व उसकी पत्नी लीला और छोटा बेटा शरद अपने माता- पिता को बूढ़ा मानकर उनके साथ गलत व्यवहार करते हैं। उनको तरह तरह से परेशान करते हैं।
इन्हीं परेशानियों के कारण वी वी ईनामदार समाचार पत्र में विज्ञापन देते हैं की यदि किसी को माँ- बाप या दादा- दादी को गोद लेने की इच्छा हो तो वह दोनो उप्लब्ध हैं। विज्ञापन पढ़ कर जय सिंह नाम के एक दम्पत्ति उन दोनों को गोद लेने आते हैं, इसी बीच राघव नाम का उनका दत्तक पुत्र वी वी ईनामदार के पास आकर उनको गले लगा लेता है। सारी बाते सुनकर राघव व उसकी पत्नी ईरावती, वी वी ईनामदार और उनकी पत्नी रुकमणी देवी को अपने घर ले जाकर उनकी सेवा करता है।
रुकमणी के जन्म दिवस पर रुकमणी की तबियत खराब हो जाती है और कुछ समय बाद उसकी मौत हो जाती है। अपनी पत्नी रुकमणी की मृत्यु से आहत वी वी ईनामदार भी बीमार रहने लगते हैं और अंतिम समय के दौरान राघव अपने पिता को बताता है कि उनके नाम से 50 लाख रुपये का लॉटरी के टिकट का ईनाम निकल आया है। इस खुशी में वह अपने बेटे राघव को अपनी अंतिम इच्छा बता कर दम तोड़ देते हैं, यहीं पर नाटक का समापन हो जाता हैं।
सशक्त कथानक से परिपूर्ण नाटक ‘ कालचक्र ‘ में अशोक लाल, अचला बोस, मोहित यादव, श्रद्धा बोस, मोनिश सिद्दिक़ी, आदर्श तिवारी, अनमोल कुमारी, आनन्द प्रकाश शर्मा, विजय वीर सहाय, समरिता और रवि श्रीवास्तव ने अपने दमदार अभिनय से रंगप्रेमी दर्शकों को देर तक अपने आकर्षण के जाल में बांधे रखा। नाट्य नेपथ्य में कमेन्द्र सिंह गौर, सचिन चौहान ( सेट डिजाइन), नदिम अंसारी, शकील ब्रदर्स ( सेट निर्माण), दीपिका बोस, अरुण कुमार विश्वकर्मा ( संगीत), मोहम्मद हफीज ( प्रकाश), अर्चना, सपना, पूजा, बी एन ओझा ( वस्त्र विन्यास) का योगदान नाटक को सफल बनाने में महत्वपूर्ण साबित हुआ।