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पुनर्विचार को विवश करता मंच पर उतरा ‘महारथी’

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उर्मिल रंग उत्सव : दूसरी शाम

लखनऊ, 17 जुलाई। महाभारत का चरित्र कर्ण दानवीर, महात्मा, महारथी तो कहलाया, फिर भी वह वर्ण व्यवस्था का शिकार हुआ तो क्यों? क्यों उसे सतत संघर्ष करना पड़ा?
उर्मिलकुमार थपलियाल फाउंडेशन की ओर से संत गाडगेजी महाराज प्रेक्षागृह गोमतीनगर में कल से प्रारंभ दूसरे उर्मिल रंग उत्सव के दूसरे दिन विभांशु वैभव के लिखे नाटक ‘महारथी’ का रितेशकुमार अस्थाना के निर्देशन में मंचन कुछ ऐसे ही प्रश्न दर्शकों के सामने उठाता है।
महारथी की कथा आख्यान महाभारत के पात्र कर्ण के जीवन पर लिखा और वर्तमान जीवन संघर्ष को समेटता संवेदनशील नाटक है। प्रदर्शन में अभिशप्त दौर योद्धा महारथी कर्ण, भगवान श्रीकृष्ण, कुंती, दुर्योधन, अर्जुन, भीम आदि पात्रों के जरिए आज के समय के सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश है और यह नाटक युद्ध के विरुद्ध और शांति के पक्ष में खड़ा होता है। इसमें धर्मयुद्ध कहे गए महाभारत पर पुनर्विचार है कि क्या वह वास्तव में धर्म युद्ध था! सूर्यपुत्र कर्ण का चरित्र इस नाटक में दलित प्रश्न के रूप में सामाजिक व्यवस्था पर फिर से बहस करने के लिए प्रेरित करता है और वर्ण व्यवस्था को अभिशाप के रूप में सामने रखता है। कर्ण का साहस, वीरता, दानशीलता और मैत्री भावना अतुलनीय है। संकट के विषम दौर में महारथी नाटक आदर्श जीवन मूल्यों की प्रतिष्ठा करने के लिए प्रेरित करता है। कर्ण जीवन भर व्यक्तिगत तौर पर नहीं, कई स्तरों पर समाज से लड़ता रहा। वैसा संघर्ष महाभारत के किसी और पात्र ने नहीं किया। कर्ण के आत्म संघर्ष की व्याख्या करने के साथ नाटक प्रासंगिक बन जाता है, इसलिए भी कि यह देश का और समाज की समस्याओं का समाधान खोजने में हमारी मदद करता है। युग बीते, सदियां बीती, पर जातिगत भेदभाव का दंश समूचे समाज को आज भी डसता है, जबकि हमारे देश का संविधान कहता है कि भारत में किसी के भी साथ जाति, धर्म, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जाएगा। लेकिन आज भी कई कोनों में ऐसी खबरें हमारे सामने आती है। जिसमें किसी न किसी के साथ उक्त भेदभाव निरंतर जारी है। उपरोक्त घटनाएं उस बीमार मानसिकता को दर्शाती है जो संविधान में लिखी बातों को न करने से गुरेज नहीं करती क्योंकि युगों से दिमाग में सड़ती वर्ण व्यवस्था का दीमक मौजूदा समय संविधान को चाट रही है।
नाटक में कर्ण की भूमिका निभाने वाले संदीप कुमार देव के साथ धृतराष्ट्र- परशुराम, गांधारी- आकृति गुप्ता, कुंती- रोजी मिश्रा, वृषाली- मयूरी, सखी- आकृति गुप्ता, आद् या मिश्रा, सुदामन- कृष्णा सिंह, कृष्ण- अभय कुमार सिंह, द्रोण- शुभम तिवारी, भीष्म- मो. इमरान, द्रुपद- राजवीर सिंह, दुर्योधन- मनीष सिंह, दुःशासन- आदित्य वर्मा, युधिष्ठिर- सुशांत यदुवंशी, भीम- अभय प्रताप मित्रा, अर्जुन- विनय कुमार गौड़, नकुल- उत्कर्ष तिवारी, सहदेव- प्रवीण यादव, द्रौपदी- प्रिया सिंह राठौर, नागरिक- उत्कर्ष, दिवाकर, सुधांशु, अभय व सुशांत, रहे। मंच पार्श्व में मंच प्रबंधक संदीप कुमार दे, सहायक- मुकेश व अभिषेक, प्रकाश परिकल्पना व संचालन देवाशीष मिश्रा, संगीत परिकल्पना- पार्थ श्रीवास्तव, संगीत संचालन- राहुल शर्मा, रूपसज्जा- शहीर व सचिन का साथ अब्दुस्सलाम अंसारी, रोजी मिश्रा, अंजलि शुक्ला, अंशु, अभयकुमार मिश्रा और कलाकारों का सहयोग रहा।

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