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पीछे मुड़कर देखती हूं तो अस्सी साल का सब कुछ बहुत मजेदार लगता है : आशा भोसले

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हेमन्त शुक्ल

 (वरिष्ठ पत्रकार व फिल्म समीक्षक)

आशा भोसले के जन्मदिन पर विशेष:-

लता ताई की बहन हूं इसलिए मेरे लिए भी संगीत सांस लेने जैसा है

नब्बे साल की सदाबहार गायिका आशा भोसले शुक्रवार 8 सितंबर को अपने जन्मदिन के खास मौके पर दुबई में हैं और एक लाइव कंसर्ट में शामिल हुईं।
लता मंगेशकर की छोटी बहन और दीनानाथ मंगेशकर की पुत्री आशा ने फिल्मी और गैर फिल्मी लगभग 16 हजार गाने गाये हैं और इनकी आवाज़ के प्रशंसक पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। हिंदी के अलावा उन्होंने मराठी, बंगाली, गुजराती, पंजाबी, भोजपुरी, तमिल, मलयालम, अंग्रेजी और रूसी भाषा के भी अनेक गीत गाए हैं। आशा भोंसले ने 1948 में अपना पहला हिन्दी गीत- सावन आया… फिल्म चुनरिया में गाया। इसके बाद बी. आर. चोपड़ा ने फिल्म नया दौर(1957) में उनकी प्रतिभा की पहचान कर आने वाली बाद की फिल्मों में पुन: मौका दिया। उनमें प्रमुख फिल्म— वक्त, गुमराह, हमराज, आदमी और इन्सान और धुंध आदि हैं। आशा भोसले राहुल देव वर्मन के संगीत निर्देशन की फिल्म ‘तीसरी मंजिल’(1966) से काफी प्रसिद्ध हुईं। इससे पहले आशा ने 1945 में मराठी फिल्म माझा बाल के लिए अपना पहला फिल्मी गीत- चल चल नव बाला… गया था। अपने 80 साल के अनुभव और लगभग 16 हजार गीतों को गाने के बाद वह फिर से एक बहुत बड़े कार्यक्रम को पेश कर रही हैं जो दुबई में हो रहा है। उन्हें खुशी इसलिए है कि वह फिर से कार्यक्रम पेश करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने एक संवाद समिति से कहा कि मेरे लिए संगीत सांस लेने जैसा है। उनका यह उद्गार इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि यह प्रक्रिया उनके लिए हमेशा आसान नहीं रही। मीना कुमारी से लेकर काजोल सहित तमाम अभिनेत्रियों के लिए वर्षों गायन कर चुकी आशा भोसले ने हर मूड के गाने गाए हैं और यही उनकी प्रतिभा का प्रमाण भी है। वह कहती हैं- “पीछे मुड़कर देखती हूं तो सब कुछ बहुत मजेदार लगता है”।
आज उनके गाए हुए गीतों को याद करें तो निर्दोष(1973) का गीत- कोई मंतर मार दे ऐसा कोई जंतर, नीलिमा(1975) का गीत तू जो कहे बन जाऊंगी मैं वही, ऐलान(1971) अंग से अंग लगा ले सांसों में है तूफान, नादान (1971) बोल नादान दिल तुझको क्या हो गया, बुलेट (1976) मत छेड़ो मन की बातें इन बातों में, बाजी (1968) दिल टूटा रोए नैना अब प्यार समझ में, दुनिया का मेला (1974) दिल तोड़ के सड़क पर फेंक दूंगी, बंधे हाथ (1973) ओ माझी ओ माझी ओ माझी, अनामिका (1973) आज की रात कोई आने को है, गरम मसाला (1972) हो तुम जैसों को तो पायल में बांध दूं, राजा जानी (1972) जा रे जा मैंने तुझको जान लिया रे, छलिया (1960) प्यार बेचती हूं दीदार बेचती हूं, सुजाता (1959) काली घटा छायी मोरा जिया तरसायी, आदमी और इन्सान (1969) जिंदगी के रंग कई रे साथी रे, एक नारी एक ब्रह्मचारी (1971) आपके पीछे पड़ गयी मैं दिल लेकर, अनहोनी(1973) बलमा हमार मोटर कार लेके आयो रे, उधार का सिंदूर(1976) लीजिए वो आ गयी नशे की शाम लेकर, नया दिन नयी रात (1974) बहुत गुजर चुकी थोड़ी सी रात बाकी, कोरा बदन (1974) जिंदगी जिंदादिली का नाम है, जिंदगी और मौत (1965) दिल लगा कर हमने जाना जिंदगी क्या चीज है, छैला बाबू (1977) हो यार दिलदार तुझे कैसा चाहिए, मेरा साया (1966) झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में, डोली (1969) सजना साथ निभाना, साहब बीवी और गुलाम (1959) मेरी जान ओ मेरी जान अच्छा नहीं इतना, कटी पतंग (1970) मेरा नाम है शबनम प्यार से लोग मुझे शब्बो कहते हैं, दोराहा (1971) तुम ही रहनुमा हो मेरी जिंदगी के, प्राण जाए पर वचन न जाए (1974) बीकानेर की चुनरी ओढ़ी लहंगा पहना जयपुर का, चोर मचाए शोर (1974) ले जाएंगे ले जाएंगे दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, मुकद्दर का सिकंदर (1978) ओ साथी रे तेरे बिना भी क्या जीना, शान (1980) प्यार करने वाले प्यार करते हैं शान से, प्रोफेसर प्यारेलाल (1981) और मुस्कुराए जा, ये रात फिर ना आएगी (1966) हर टुकड़ा मेरे दिल का देता है दुहाई- और- मैं शायद तुम्हारे लिए अजनबी हूं, बंदिनी (1963) अब के बरस भेज भैया को बाबुल… जैसे गीतों को जब भी फिल्मी गीत सुनने वाले सुनते हैं आशा जी के सुरलहरी के दीवाने हो जाते हैं।
गायिकी के क्षेत्र में उन्हें भी तब संघर्ष करना पड़ा जब मशहूर पार्श्वगायिकाएं गीता दत्त, शमशाद बेगम और लता मंगेशकर का जमाना था। चारों ओर इन्हीं सभी का जलवा था। वह गाना तो चाहती थीं मगर इन्हें गाने का मौका तक नहीं दिया जाता था। वह सिर्फ दूसरे दर्जे की फिल्मों के लिए ही गा पाती थीं। 1950 के दशक में बॉलीवुड के अन्य गायिकाओं की तुलना में उन्होंने कम बजट की ‘बी’ और ‘सी’ ग्रेड फिल्मों के लिए बहुत से गीत गाए। इनके गीतो के संगीतकार ए. आर. कुरैशी (अल्ला रख्खा खान), सज्जाद हुसैन और गुलाम मोहम्मद जैसे लोग थे, जो सफल नहीं माने जाते रहे लेकिन दिलीप कुमार अभिनीत फिल्म संगदिल(1952) जिसके संगीतकार सज्जाद हुसैन थे, ने आशा भोसले को प्रसिद्धि दिलायी। इसके बाद बिमल रॉय ने एक मौका आशा जी को अपनी फिल्म ‘परिणीता’ (1953) के लिए दिया। राजकपूर ने गीत ‘नन्हे मुन्ने बच्चे।…’ के लिए मोहम्मद रफी के साथ फिल्म बूट पॉलिश्(1954) के लिए अनुबंधित किया जिसने भी आशा जी को काफी प्रसिद्धि दिलायी। यही नहीं फिल्म संगीत में अपनी अलग पहचान रखने वाले ओ.पी. नैयर ने भी आशा जी को बहुत बड़ा अवसर फिल्म सी. आई. डी.(1956) और नया दौर(1957) के गीत गाने के लिए दिया। इसके बाद तो सचिन देव बर्मन और रवि जैसे संगीतकारों ने भी उन्हें भरपूर मौका दिया। ऐसी ही प्रसिद्धि 1966 की सफलतम फिल्म ‘तीसरी मंजिल’ में आशा जी ने संगीतकार आर. डी. बर्मन के साथ बटोरी। इसी का असर रहा कि वह 1960 से 1970 के बीच की फिल्मों में प्रसिद्ध डॉसर हेलन के गीतों की आवाज बनी रहीं। इसी का सफल असर रहा कि आशा जी ने युवा अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर के लिए फिल्म रंगीला(1995) में नये अन्दाज में गाया क्या कि अपने चाहनेवालों को आश्चर्यचकित कर दिया। सुपर हिट गीत- तन्हा तन्हा… और रंगीला रे… गीत ए. आर. रहमान के संगीत निर्देशन में गाया जिसने तहलका मचा दिय। बाद में भी कई फिल्मों के लिए ए.आर. रहमान के निर्देशन में गाया जो हिट भी हुए। तन्हा तन्हा… गीत तो इतना प्रसिद्ध हुआ कि आज भी लोग संगीत प्रतियोगिताओं में इसे गुनगुनाते हैं। इसी तरह मुजफ्फर अली की रेखा अभिनीत फिल्म उमराव जान(1981) में उन्होंने जो कई गज़ल गाए जैसे- दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिए…, इन आँखों की मस्ती के…, ये क्या जगह है दोस्तों… और जुस्त-जू जिसकी थी… उन्होंने फिल्मी ग़ज़ल गायिकी में सचमुच तहलका मचा दिया था।इन गज़लों के संगीतकार खय्याम थे जिन्होंने आशा को कामयाबी से गज़लों को गाने के लिए सुरों के उतार-चढ़ाव की बारीकी को समझाया था। फिल्म के गीतों की रिकार्डिंग के बाद आशा भोसले स्वयं आश्चर्य में डूब गयी थीं कि वह इन गज़लों को किस खूबसूरती से गा चुकी हैं। इन गज़लों ने आशा जी को प्रथम राष्ट्रीय पुरस्कार भी दिलाया और इसके बाद तो उनकी बहुमुखी प्रतिभा को अपने-आप चार-चांद लग गए।
देखा जाए तो 1995 की हिट फिल्म ‘रंगीला’ से अपनी दूसरी पारी का आरम्भ करने वाली 72 वर्षीय आशा जी ने 2005 में तमिल फिल्म ‘चन्द्रमुखी’ और पॉप संगीत ‘लक्की लिप्स…’ सलमान खान अभिनीत फिल्म के लिए गाया।
अक्टूबर 2004 में ’द वेरी बेस्ट ऑफ आशा भोसले’, ‘द क्वीन ऑफ बॉलीवुड’ आशा जी के द्वारा गाए गीतो का एलबम (1966-2003) रिलीज किया गया।
यह 80 साल का उनके गीतों का सफर हमें उनकी बहुरंगी प्रतिभा से सीधे-सीधे परिचित ही नहीं कराता बल्कि एक विशेष सम्मान से प्रशंसित भी कराता है।

-: पुरस्कार और सम्मान :-

फिल्म फेयर बेस्ट फिमेल प्लेबैक अवार्ड,

1968-“गरीबो की सुनो…”(दस लाख – 1966)
1969-“परदे में रहने दो…”(शिकार – 1968)
1972- “पिया तू अब तो आजा…”(कारवाँ – 1971)
1973-“दम मारो दम…”(हरे रामा हरे कृष्णा – 1972)
1974-“होने लगी है रात…”(नैना – 1973)
1975-“चैन से हमको कभी…”(प्राण जाये पर वचन ना जाये – 1974)
1979-”ये मेरा दिल…”(डॉन – 1978)
अन्य पुरस्कार :-
1996-स्पेशल अवार्ड (रंगीला-* 1995)
2001-फिल्म फेयर लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार
1981- “दिल चीज क्या है।..”(उमराव जान)
1986 “मेरा कुछ सामान…”(इजाजत)
अन्य यादगार पुरस्कार
1987- नाइटीनेंगल ऑफ एशिया अवार्ड (इंडो पाक एशोशिएशन यु.के.)
1989- लता मंगेशकर अवार्ड (मध्य प्रदेश सरकार) * 1997- स्क्रीन वीडियोकॉन अवार्ड (जानम समझा
करो- एलबम के लिए)

1997- एम.टी.वी. अवार्ड (जानम समझा करो- एलबम के लिए)
1997- चैनल वी अवार्ड (जानम समझा करो- एलबम के लिए)
1998- दयावती मोदी अवार्ड
1999- लता मंगेशकर अवार्ड (महाराष्ट्र सरकार)
2000- सिंगर ऑफ द मिलेनियम (दुबई) 2000- जी गोल्ड बॉलीवुड अवार्ड (मुझे रंग दे- फिल्म तक्षक के लिए)
2001- एम.टी.वी. अवार्ड (कमबख्त इश्क – के लिए) 2002- बी.बी.सी. लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड (यू॰के॰ प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर के द्वारा प्रदत्त) 2002- जी सिने अवार्ड फॉर बेस्ट प्लेबैक सिंगर – फिमेल (राधा कैसे न जले..-फिल्म लगान के लिए)
2002- जी सीने स्पेशल अवार्ड फॉर हॉल ऑफ फेम 2002- स्क्रीन वीडियोकॉन अवार्ड (राधा कैसे न जले..-फिल्म लगान के लिए)
2002-सैनसुई मुवी अवार्ड (राधा कैसे न जले..-फिल्म लगान के लिए)
2003- सवराल्या येशुदास अवार्ड (भारतीय संगीत में उत्कृष्ट योगदान के लिए) 2004- लीविंग लीजेंड अवार्ड (फेडरेशन ऑफ इंडियन चेम्बर ऑफ कामर्स एण्ड इंडस्ट्रीज के द्वारा)
2005- एम.टी.वी. ईमेज, बेस्ट फीमेल पॉप ऐक्ट (आज जाने की जिद न करो। .) 2005- मोस्ट स्टाइलिश पीपुल इन म्यूजिक।

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