संत गाडगे प्रेक्षागृह में पांच दिवसीय उर्मिल रंग उत्सव की दूसरी शाम
हो असहमति में विरोध और सहमति में विवेक का इस्तेमाल
लखनऊ, 17 जुलाई। किसी महान व्यक्तित्व को साक्षात देखना एक अलग अनुभव है। ऐसे ही एक व्यक्तित्व जर्मन नाटककार बर्तोल्त ब्रेख्त की जिंदगी और उनके रचना पक्ष से प्रेक्षक यहां संत गाडगेजी महाराज प्रेक्षागृह गोमतीनगर में जुड़े। रंगनिर्देशक व्यंग्यकार डा. उर्मिल कुमार थपलियाल की स्मृति में डा.उर्मिलकुमार थपलियाल फाउण्डेशन के तत्वावधान में कल से शुरू हुए उर्मिल रंग उत्सव के दूसरे दिन आयोजक फाउण्डेशन की ओर से डा.थपलियाल के लिखे, संगीतबद्ध किये और पूर्व में निर्देशित कर प्रस्तुत किये जा चुके ‘हे ब्रेख्त’ नाटक का पुनर्मंचन रितुन थपलियाल और नितीश भारद्वाज के संयुक्त निर्देशन में प्रस्तुत किया गया।
ब्रेख्त का सारा रचनाकर्म उनके समय के वैश्विक युद्ध और सामाजिक परिस्थितियों पर जागरूकता पैदा करने वाला है। इसी नाते प्रासंगिक भी बना हुआ है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच आज भी सम्पूर्ण विश्व फंसा प्रभावित हो रहा है। बर्ताल्त ब्रेख्त ऐसे जर्मन कवि, उपन्यासकार, नाटककार और रंगकर्मी थे, जिनकी रचनाओं का पूरी दुनिया में असर आज भी दिख्ता है। ‘खराब रोटी और खराब इंसाफ, दोनों को फेंक डाला, देर से मिली रोटी और देर से मिला इंसाफ दोनों बासी होते हैं, नाकाफी और बेस्वाद’ जैसी कविताएं रचने वाले ब्रेख्त में सही अर्थों में क्रांति के स्वर थे। उनके ‘अलगाववादी रंग सिद्धांत’ भी महत्वपूर्ण है, ‘हे ब्रेख्त’ का आधार ब्रेख्त की कुछ कविताएँ. कुछ छोटी कहानियाँ और छोटे नाटक हैं इनमें युद्ध के समय की त्रासदियों तो हैं ही, मानवीय संघर्ष और यातना के प्रसंग भी हैं। ये रचनाएँ समय और समाज की चुनौतियों से मुठभेड करती हैं, ब्रेख्त साहित्य, संगीत, कला और रंगमंच को परिवर्तन का माध्यम मानते थे। नाटक ब्रेख्त के कृतित्व के निचोड़ को घने किन्तु रोचक रूप में मंच पर रखते हुए बताता है कि जब तक दुनिया में त्रासदी है, संकट है, बारूद के ढेर हैं, मनुष्य के अस्तित्व को खतरा है। ऐसे में सामजिक क्रांति के ऐसे दमदार स्वर ही मनुष्यता को हर युग में सार्थक कर सकते हैं। मनोशारीरिक रंगकर्म, गीत संगीत, कोरस और क्रिया के विरुद्ध प्रतिक्रियाओं के एक कोलाज के रूप में मंच पर उतरते हुए, हमें सामयिक संदर्भों के बारे में सोचने को विवश करता है। नाटक यह कहना चाहता है कि असहमति में विरोध और सहमति में विवेक का इस्तेमाल करना जरूरी है। आज भी समय में ब्रेख्त की उपस्थिति अनिवार्य लगती है।
नाटक में फ्राउडीज हरफैन व जनरल, व मार्था की प्रमुख भूमिकाएं क्रमशः रोजी दूबे, नितीश भारद्वाज और रितुन थपलियाल ने कुशलता से निभायीं। इनके साथ विदूषक व कोडे वाला, उद्घोषक, अभिनेत्री आदि अन्य कई चरित्रों में पंकज सत्यार्थी, अभ्युदय तिवारी, एकता सिंह, उत्कर्ष त्रिवेदी, अक्षयदीप गौड़, अक्षांश मिश्रा, मंजूश्री बनर्जी, तान्या तिवारी, प्रखर द्विवेदी, सुंदरम मिश्रा, सुंदर मिश्रा, सोहेल शेख, वंश श्रीवास्तव, आयुष श्रीवास्तव, ओमकार, पुष्कर, कोमल प्रजापति, एकता सिंह, अनीता सिंह, तान्या तिवारी, रंजीत सिंह, रश्मि श्रीवास्तव, ऋषभ पाण्डेय इत्यादि मंच पर उतरे। कोरस में व हर्षिता आर्या, अक्षांश मिश्रा व पंकज सत्यार्थी शामिल थे। नेपथ्य के कार्यों में मंच सामग्री में अभ्युदय, रंग प्रबंधन व कोरियोग्राफी में रितुन और अन्य पक्षों में वंश श्रीवास्तव, रोजी दूबे, देवाशीष मिश्र, पीयूष पाण्डेय, रितेश के साथ कलाकारों का सहयोग रहा।
मुख्य अतिथि के तौर पर और विशिष्ट अतिथि के तौर पर गौ उत्पादक संघ के समन्वयक राधेश्याम दीक्षित आमंत्रित थे।