लुप्तप्राय पुतुल कला पर निकला छायानट विशेषांक
लखनऊ, 28 जुलाई। बहु प्रतीक्षित लुप्तप्राय पुतुल कला पर उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की त्रैमासिक पत्रिका ‘छायानट’ के सद्य प्रकाशित विशेष अंक-167 का विमोचन दो अगस्त को होगा। विशेषांक के विमोचन अवसर पर गुलाबो-सिताबो के संग ही कठपुतली नाटिका के प्रदर्शन भी होंगे।
अकादमी के निदेशक तरुण राज ने बताया कि विमोचन समारोह में लखनऊ के प्रदीपनाथ त्रिपाठी अवध की पारंपरिक गुलाबो सिताबो का और शाहजहांपुर के कप्तान सिंह कर्णधार कठपुली नाटक केवल जिम्मेदारी’ का प्रदर्शन दो अगस्त की शाम साढ़े छह बजे वाल्मीकि रंगशाला अकादमी परिसर गोमतीनगर में करेंगे। उन्होंने बताया कि अंक में लेखों में विश्व भर में हो रहे समकालीन पुतुल कला से सम्बंधित लेखों के साथ ही उत्तर, दक्षिण व उत्तर -पूर्व की कठपुतली कला पर विशेषज्ञों ने अपनी दृष्टि डाली है। विशेषांक में अंतर्राष्ट्रीय पुतुल कला मंच के अध्यक्ष पद्मश्री दादी डी.पद्मजी से बातचीत सम्यक है तो मुखपृष्ठ पर उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र की एकल कला विधा गुलाबो-सिताबों की तस्वीर के साथ यह अंक इसी विधा को समर्पित है।
पहला शोधपरक लेख भी ‘गुलाबो-सिताबो’ के खेल पर विधा की धमक विदेशों तक पहुंचाने वाले प्रदीपनाथ त्रिपाठी का है। उदयपुर के वयोवृद्ध विद्वान डा.महेन्द्र भानावत ने गुलाबो-सिताबो की व्याख्या की है। साथ ही विभिन्न भारतीय और कई अन्य देशों की पुतुल कला पर अपनी दृष्टि दी है। गुलाबो-सिताबो के परम्परागत कलाकार नौशाद पर शबाहत हुसैन विजेता का विशिष्ट लेख है। उन्होंने बताया कि भारतरत्न पं.रविशंकर पर चर्चित जन्म शताब्दी विशेषांक संपादित कर चुके कला समीक्षक राजवीर रतन के संपादन में निकले इस पुतुल कला विशेषांक के सम्पादकीय में भी गुलाबो-सिताबो से जुड़े तथ्य हैं तो उन्हीं के लिखे पुतुल नाटक ‘जब जागा तभी सवेरा’ में गुलाबोे-सिताबो की नोंक-झोंक की झलकी भी अंक के गुलाबो-सिताबो पर केन्द्रित होने की तस्दीक करती है।
केरल व दक्षिण भारत की पुतुल कलाओं के प्रयोगों को रामचन्द्र पुलवर-राहुल पुलवर ने, बंगलुरु की अनुभवी पुतुलकर्मी अनुपमा होसकेरे ने यक्षगान से सम्बंधित कर्नाटक की अनूठी सजीली पुतुल कला के बारे में, बंगाल के चमत्कृत करने वाले पुतुलकर्मी सुदीप गुप्ता ने बंगाल की पुतुल कला को अपनी दृष्टि से लेख में उकेरा है। भरतपुर के लोकनाथ शर्मा ने अनेक संस्कृत सूत्र प्रस्तुत किये हैं। पुतुल कला की संरक्षक के तौर पर जानी गई श्रीमती वेल्दीफिशर के बसाए साक्षरता निकेतन से जुड़े लायकराम मानव का लेख पुतुल कला के शैक्षिक आयाम प्रस्तुत करता है। लोककला विशेषज्ञ ज्योति किरन रतन का लेख केरल में पुतुल परम्परा का जीवंत दस्तावेज बनी पद्मश्री मुजक्किल पंकजाक्षी पर है। विदुषी डा.मौसुमी भट्टाचार्जी ने अपने लेख में असम की पुतुल कला के परम्परा से आधुनिकता की ओर बढ़ते कदमों की व्याख्या की है।
चेन्नई की वंदना कन्नन के लेख में अंगुल पुतुल के साथ ही वैश्विक स्तर पर हुए प्रयोगों, डिजिटल तकनीकों और रोबो पुतलों का जिक्र है।आनंद अस्थाना के लेख में संगीत नाटक अकादमी के प्रयासों को रेखांकित करने का यत्न है। अंक में प्रो.रामनिरंजन लाल, अनिल मिश्रा गुरुजी, पुतुल कलाकार मिलन यादव, मेराज आलम, दीपा मित्रा, वाराणसी के राजेंद्र श्रीवास्तव व डॉ.नन्दिनी मेहता के लेखों के अतरिक्त अनिल गोयल व विभा सिंह इत्यादि के भी लेख हैं।