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गुजरात से लेकर मणिपुर की लोक संस्कृति को एक ही मंच पर

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लखनऊ, 25 मार्च। शहर वासियों को एक ही मंच पर गुजरात से लेकर म्यांमार की सीमा से लगे प्रदेश मणिपुर की लोक संस्कृति को एक ही मंच पर दर्शन करने का अवसर मिला। लोक कलाकारों के अलग-अगल परिधान थे, अलग-अलग बोली-बानी लेकिन वे सब अपने ही देश की संस्कृति को प्रस्तुत करने आए हुए थे। लोक सांस्कृतिक संस्था ’सोन चिरैया’ की ओर से शनिवार से दो दिवसीय लोक संस्कृति के उत्सव’ देशज’ शुरू हुआ। गोमती नगर स्थित लोहिया पार्क के खुले मंच पर आयोजित उत्सव का उद्घाटन मुख्य अतिथि केन्द्रीय संस्कृति राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने दीप प्रज्जवलित करके किया। इस अवसर पर सस्था की सचिव एवं प्रसिद्ध लोक गायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के सलाहकार अवनीश अवस्थी, कबीर गायन के लोक कलाकार पद्मश्री प्रहलाद टिपानिया, पद्मश्री मंजम्मा जोगती भी उपस्थित थीं। उत्सव मेें उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक भी शामिल हुए।
इस अवसर पर कर्नाटक में देवी माता को समर्पित जोगती लोक का पुनः जागृत करने वाली लोक कलाकार पद्मश्री मंजम्मा जोगती को ’लोक निर्मला’ सम्मान से विभूषित भी किया गया। सम्मान स्वरूप उन्हें एक लाख रूपए की धनराशि भी दी गई। इस अवसर पर लोक गायिका मालिनी ने बताया कि यह सम्मान वह अपनी मां की स्मृति में प्रत्येक वर्ष देती है। उन्होंने कहा कि समाज नारियों को अपना मुकाम हासिल करने में काफी संघर्ष व मेहनत करनी पड़ती है। उन्हांेने आए मुख्य अतिथि का स्वागत पुष्प गुच्छ, स्मृति चिन्ह व शाल ओढाकर किया । मुख्य अतिथि ने एक भजन की कुछ लाइने भी सुनाई।
इस अवसर पर अवधी परिधान पहनने हुए प्रसिद्ध लोक गायिका ने मालिनी अवस्थी ने अपना प्रिय गीत ’ होली खेले रघुबीर अवध में, होली खेले रधुबीरा… गाया तो अवध की माटी की सोंधी खुशबू चहुंओर फैल गई।
इस लोक उत्सव की सबसे बड़ी खूबी यह थी कि इसमें भगवान श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा के ऋषिकुल इंटरनेशनल कॉलेज के छोटे-छोटे बच्चों ने आल्हा गायन को परम्परा से हटकर इसकी शुरूआत हनुमान चालीस से की। इसके बाद उन्हांेने गाया भजन ’ सुमिरन करों नारायन का, लेकर बंजरगबली का घ्यान… गाया। वे सब बच्चे आल्हा गायन की पारम्परिक पीले रंग की पोशाक पहने व हाथों मे तलवार लिए हुए थे। बच्चों ने बताया कि इसमंे व भगवान श्रीकृष्ण के विभिन प्र्रसंगों को आल्हा की रहन पर गाते है। वे सभी उत्साहित थे और पहली बार अपने जिले से बाहर प्रदर्शन करने आए थे। वे अपने स्कूल में बकायदा आल्हा गायन सीखते है।
इसके अलावा उत्सव में मणिपुर का युद्ध शैली मे किया जाने वाला नृत्य, थांगटा और एक खास वाद्य पुंग के साथ किया जाने वाला नृत्य पुंगचोलम किया। गुजरात से आए लोक कलाकारों , जिनके पूर्वज अफ्रीका से आए थे, उन्होंने लोक नृत्य सिद्धि धमाल किया। कलाकारों ने बताया कि यह जंगलों में रहते थे, इसलिए इनके नृत्य में पशु-पक्षियों के दृश्य उभरते है। इसके अलावा पंजाब के लोक नृत्य भांगडा, हरियाणा के लोक नृत्य धमाल, पश्चिमी बगाल से आए लोक कलाकारों ने छऊ नृत्य, अवध का लोक नृत्य ढेढिया भी प्रस्तुत किया गया।
उत्सव में मंच के चारोें ओर बैलगाडी पहिए, कच्चे छपरा वाले मिट्टी के घर को सजाकर गांव की लोक संस्कृति का उभारा गया गया था।
उत्सव में रविवार को भी शाम 5 बजे इसी मंच पर इन्हीं कलाकारों की संस्कृति प्रदर्शित होगी। समापन समारोह के मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश के पर्यटन एवं सस्कृति मंत्री जयवीर सिंह होंगे।

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