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कन्या भ्रूण हत्या के प्रति सजग करती व्यंग्य नाट्य प्रस्तुति ‘अकबर की जोधा’

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वाल्मीकि रंगशाला में नाटक ‘अकबर की जोधा’ का मंचन

लखनऊ, 27 फरवरी। कानून हैं फिर भी कानूनों के समुचित पालन न होने की वजह से पुत्र की चाहत में कन्या भ्रूण हत्या रुक नहीं रही। इसी विषय को रोचक कथानक में समेटकर प्रस्तुत किये गये नाटक ‘अकबर की जोधा’ का मंचन वाल्मीकि रंगशाला, संगीत नाटक अकादमी गोमतीनगर में आज शाम व्यंग्य परक ढंग से किया गया। साठ दिवसीय कार्यशाला के अंतर्गत तैयार और जीशान जैदी के लिखे इस नाटक की सम्पूर्ण परिकल्पना एवं निर्देशन तनवीर हुसैन रिज़वी और नईम खान का था।
कन्या भ्रूण हत्या पर कटाक्ष करती हास्य के रंग में रंगी इस प्रस्तुति सत्ता और समाज को सजग किया गया कि यदि गर्भ में कन्या भ्रूण हत्या रोकने वाले कानूनों पर आधारित कड़ी कार्रवाई अमल में नहीं लायी गयी तो एक समय ऐसा आयेगा जब महिला-पुरुष के अनुपात बेहद असंतुलित हो जायेगा।युवकों को विवाह योग्य कन्याएं ढूंढने पर भी नहीं मिलेंगी।
नाटक की शुरुआत में गोपाल अभिनेता के रूप में आइने के सामने खड़ा होकर एक नाटक के संवाद दोहरा रहा है। इसी दौरान दूसरा अभिनेता रफीक आता है और दोनों मिलकर नाटक की तैयारी में व्यस्त हो जाते हैं। इसी समय नाट्यनिर्देशक चिंतित से कलाकारों के बीच आते हैं। उनकी चिंता है कि तमाम कोशिशों के बावजूद नाटक का शीर्षक सार्थक करने के लिए उन्हें जोधा के चरित्र के लिए कोई फिट युवती नहीं मिल रही तो आखिर मंचन होगा कैसे! कहते हैं कि इस तरह तो ये नाटक हों ही नहीं पायेगा। जोधा को ढूढ़ने की मेरी सारी कोशिशें नाकाम हो गयीं, शहर-शहर घूमने के बाद भी एक भी लड़की ऐसी नहीं मिली जो जोधा का किरदार अदा कर सके! अभिनेता रफीक कई तथ्य सामने रखता बताता है कि जोधा के लिए कोई युवती मिले भी तो कैसे? अब तो मां-बाप लड़की को पैदा होने से पहले ही मार दे रहे हैं। सब सहमत होते हैं कि कोशिशों और कानूनों के बाद भी देश के हर जगह कन्या भ्रूण हत्याओं की तादाद घटने की बजाय दिन पर दिन बढ रही है। कन्या भ्रूण हत्या आज एक राष्ट्रीय आपदा बन गयी है। इस पर समाज और सरकार को कठोरता से कार्य करना चाहिए।
नाटक में फिर भी कलाकार जोधा की तलाश करते रहते हैं और जब जोधा नहीं मिलती तो आखिर नाटक में अकबर को कुंवारा दिखाकर हास्य से भरपूर बनाकर और शीर्षक बदलकर मंचित किया जाता है और खूब पसंद किया जाता है।
नाटक में गोपाल की भूमिका शाहरुख, रफीक की निज़ाम हुसैन, पप्पू की रईस शाबाज, शन्नो की नीलम मौर्या, फेंकू की राहुल मिश्रा, नाट्य निर्देशक की अल्तमश आज़मी, बेगम महलका की प्रिया गुप्ता, अधेड़ की मोहम्मद शकील, हिजड़े की जाफर जैक्सन, माजिद बिल्डर की वजाहत और वाजिद की भूमिका शाहिद ने निभायी। रविदत्त तिवारी के प्रस्तुति नियंत्रण के साथ मंच के पीछे प्रकाश में मोहम्मद हफीज व सोनी त्रिपाठी का, संगीत में जीशान खान का, मुखसज्जा में उपेन्द्र सोनी के साथ अन्य पक्षों में जुहैब खान, चौधरी जिया इमाम, इशरत आफरीन, प्रकाशचन्द्र बाजपेयी, नूरी खान, तबस्सुम खान और कलाकारों का सहयोग रहा।

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