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ऐशबाग रामलीला मैदान में ‘ सनातन धर्म के विरोध का दमन हो ‘ शीर्षक से रावण का पुतला जलेगा 

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सीता खोज, हनुमान सीता संवाद व लंका दहन लीला ने मंत्र मुग्ध किया

लखनऊ, 22 अक्टूबर 2023। श्रीराम लीला समिति ऐशबाग लखनऊ के तत्वावधान में रामलीला मैदान में चल रही रामलीला में 24 अक्टूबर को होने वाले दशहरा पर्व पर ‘ सनातन धर्म के विरोध का दमन हो ‘ शीर्षक से रावण दहन का पुतला जलेगा। इस बात की जानकारी श्री राम लीला समिति के सचिव पं आदित्य द्विवेदी ने दी।

श्री राम लीला समिति ऐशबाग के तुलसी रंगमंच पर चल रही रामलीला के आज आठवें दिन अशोक वाटिका में रावण सीता संवाद, त्रिजटा सीता संवाद, राम लक्ष्मण संवाद, क्रोधित लक्ष्मण का सुग्रीव के पास जाना, सीता खोज, हनुमान का लंका प्रस्थान, समुद्र लांघना, विभीषण हनुमान संवाद, रावण सीता संवाद, हनुमान सीता संवाद, अशोक वाटिका विध्वंस, अक्षय वध, हनुमान का ब्रहृाफांस में बंधना, रावण हनुमान संवाद और लंका दहन लीला हुई।

राम लीला से पूर्व हुमा साहू के नृत्य निर्देशन में सुभद्रा नृत्य निकेतन के कलाकारों ने कथक नृत्य नाटिका में भगवती देवी दुर्गा के नवो रूपों के दर्शन करवाए। इसी क्रम में अमित कुमार शर्मा के नृत्य निर्देशन में सृजन डांस परफार्मिंग आर्ट के कलाकारों ने भक्ति भावना से परिपूर्ण नृत्य की प्रस्तुतियां दी।

आज की रामलीला का आरम्भ रावण सीता संवाद लीला से हुआ, इस प्रसंग में अशोक वाटिका में रावण सीता से कहता है कि वह उसकी बात मान ले और उसकी पत्नी बन जायें, इस पर सीता जी कहती है कि वह राम के सिवा किसी और की नही हो सकती हैं। इसी बीच त्रिजटा, अशोक वाटिका में प्रवेश करती है तभी रावण उससे कहते हैं कि वह सीता को समझाये कि वह मेरी बात मान ले, इसके बाद त्रिजटा सीता जी से कहती है कि उन्हें ज्ञात हुआ है कि आपके स्वामी श्री राम जी लंका की सीमा के पास है, इस बात को सुनकर सीता जी त्रिजटा के गले लग जाती हैं।

अगली प्रस्तुति में राम लक्ष्मण संवाद और क्रोधित लक्ष्मण का सुग्रीव के पास जाना लीला हुई, इस प्रसंग में भगवान राम और लक्ष्मण वन में बैठे आपस में बात करते हैं कि सुग्रीव को अपना राजपाट और पत्नी वापस मिल जाने के बाद वह सब कुछ भूल गया और उसे अपने वचन का ध्यान नही है। इस पर लक्ष्मण, राम से कहते हंै कि भइया मैं सुग्रीव के पास जाता हूं और उसे अपने वचनों को याद दिलाता हूं, जिसके लिए उसने वचन दिया था। बड़े आवेग में लक्ष्मण जी, सुग्रीव की सभा में पहुंचते और कहते हैं कि आपको अपने वचनों का भान नही है क्या, भयभीत होकर सुग्रीव कहते हैं कि किन्ही कारणोंवश ऐसा नही हो पाया। इस प्रस्तुति के उपरान्त सीता खोज, हनुमान का लंका प्रस्थान, समुद्र लांघना और विभीषण हनुमान संवाद लीला हुई, इस प्रसंग में हनुमान जी, अगंद, जामवंत और सारी वानर सेना सीता जी को ढूढ़ने के लिए निकल पड़ते हैं और इसी दरम्यान पता चलता है कि माता सीता शायद लंका में है, इस बात का पता लगाने के लिए हनुमान जी लंका जाने के लिए समुद्र के ऊपर उड़ कर लंका पहुंचते हैं।

इस लीला के उपरान्त विभीषण हनुमान संवाद, हनुमान सीता संवाद और अशोक वाटिका विध्वंस लीला हुई, इस प्रसंग में हनुमान जी जब लंका पहुंचते हैं तो विभीषण से मुलाकात होती है और सीता जी के बारे में पूरा वृतान्त बताते हैं। इस बात को सुनकर हनुमान जी इस डाल से उस डाल कूदते हुए अशोक वाटिका में अशोक के पेड़ पर बैठकर उपर से भगवान राम की अंगूठी, सीता जी की गोद में गिरा देते हैं, भगवान राम की चूड़ामणि देखकर सीता जी काफी प्रसन्न होती हैं और चारों ओर देखती है तभी पेड़ से हनुमान उतरकर सीता के पास जाकर खड़े होते हैं और सीता जी को अपने और राम जी के बारें में पूरी बात बताते हैं।

इस लीला के बाद अशोक वाटिका विध्वंस लीला, अक्षय वध, हनुमान का ब्रहृाफांस में बंधना, रावण हनुमान संवाद और लंका दहन लीला हुई, इन प्रसंग में जब हनुमान, सीता जी से कहते हैं कि माता रास्ते में आते हुए मुझे काफी भूख लगी है अगर आपकी आज्ञा हों तो मैं कुछ फल खा लूं इस पर वह कहती हैं कि ठीक है आप फल खा लिजिए, इस पर हनुमान जी अशोक वाटिका में लगे फलों को खाकर इधर उधर भी फेंकने लगते हैं और इस बात की जानकारी रावण तक पहुंचती है और रावण कहता है कि उस वानर को पकड़ कर मेरे पास लाओ मे। रावण के सैनिक हनुमान को पकड़ने कई उपयोग करते हैं लेकिन वह सफल नही होते। रावण अपने पुत्र अक्षय को भेजते हैं लेकिन वह भी सफल नही होते हैं और इस घटना के बाद रावण अपने पुत्र मेघनाद को भेजते है और वह हनुमान जी को ब्रहृाफांस में बांधकर लंका ले जाता है। रावण, हनुमान जी से यहां आने का कारण पूंछते हैं कि एक दूत को बन्दी बनाकर उससे यह सवाल पूछना उचित नही तब वह आदेश देते हैं कि इसको खोल दो, तब हनुमान जी अपने आने का प्रयोजन बताते हैं रावण सैनिकों को आज्ञा देते है वानर की पूंछ में आग लगा दो और पूछ में आग लगते ही हनुमान लंका में आग लगाकर वापस सीता जी के पास पहुंचते हैं और उनसे आज्ञा लेकर हनुमान वापस पंचवटी पहुंचते हैं।

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