Home न्यूज उर्दू ज़बान से है प्यार, विरासत में मिली है आवाज़-शाहबाज खान

उर्दू ज़बान से है प्यार, विरासत में मिली है आवाज़-शाहबाज खान

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लखनऊ दिसम्बर । आधुनिक काल में उर्दू के रेडियो नाटकों के साथ ही उर्दू नाटकों ने भारतीय रंगमंच को समृद्ध किया है। उर्दू शायरी की ही तरह उर्दू नाटकों और रंगमंच की भी उत्कृष्ट परम्परा रही है। आज के सोशल मीडिया के दौर में नई तकनीकों को लेकर नई तरक्की हासिल कर रहे उर्दू रंगमंच का सफर रोमांचित करता है तो यहां के ड्रामों में रंग भरती है उर्दू।
यह कहना था उन वक्ताओं का जो यहां उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी में आयोजित कार्यक्रम जश्न के दूसरे और समापन दिवस सुबह के पहले सत्र में शामिल थे। वॉमिक खान के संचालन में चले इस सत्र के वक्ताओं में फिल्म अभिनेता शाहबाज खान के साथ रंगमंच से सीमा मोदी, इमरान खान,यूसुफ खान व दीप सच्चर व इशिका अरोरा शामिल रही। शाहबाज खान
ने बताया कि उन्हे उर्दू ज़बान से है प्यार जबकि उनकी कड़क आवाज उन्हे विरासत में मिली है
उर्दू शिक्षा पर केन्द्रित दूसरे सत्र उर्दू के बिना तालीम नाकाफी में निधि खन्ना,डा बज्मी यूनुस व एमपी सिंह का मानना था उर्दू को दूसरे चश्मे से दिखाना बंद होना चाहिए इसको किसी मजहब या धर्म से न जोड़ा जाये। जो लोग उर्दू जानते हैं और बोलते हैं, उन्हें अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए प्रदेश और देश भर में उर्दू माध्यम स्कूलों की स्थापना के लिए एक अभियान शुरू करना चाहिए। वक्ताओं ने कहा कि उत्तर प्रदेश सहित अनेक राज्यों में उर्दू को दूसरी राजभाषा का दर्जा मिला है। अगले सत्र तहजीब में उर्दू का फुक़दान में, असमा हुसैन, शाहबाज खान, अनीस अंसारी फैजी युनूस ने उर्दू संस्कृति और परम्पराओं पर विचार रखे। आज के आखिरी सेशन कानूनी जुबा़न में एम अली साहिल, मिराज अंसारी आचार्य राजीव शुक्ला,प्रमिला मिश्रा ,निगहत खान व सलाउद्दीन ने अपने विचार रखे। कानून के शब्दों को बदलने के सवाल पर सभी का यह मानना था कि मतलब समझाने की कोशिश की जाये न कि शब्दो को बदलना।
इस मौके पर इरशाद राही की किताब ‘हमराही’ का विमोचन भी किया गया। शाम को डा सईद आलम के संचालन में हुए मुशायरें में,शाइस्ता फातिमा, यश मल्होत्रा ,सुमित भारद्वाज,बिलाल मीर, जुल्फिकार सिद्दीकी, ने शिरकत की। समापन के अवसर पर गज़ल व कव्वाली का भी आयोजन किया गया।

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