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अपने अभिनय के बल पर ही सुपरस्टार बनी मुमताज

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हेमन्त शुक्ल (वरिष्ठ पत्रकार व फिल्म समीक्षक)

बाल कलाकार से अभिनय की शुरुआत करके स्टंट फिल्मों तक का किया सफर
हिंदी फिल्म जगत में बहुत-सी ऐसी अभिनेत्री रहीं जिन्होंने अपने फिल्मी करिअर की शुरुआत बाल कलाकार के रूप में की थीं, उनमें एक नाम मुमताज का भी है जिन्होंने कई स्टंट फिल्मों में काम करने के बाद सुपरस्टार अभिनेत्री का दर्जा प्राप्त किया।
31 जुलाई 1947 को बम्बई(अब मुम्बई) में पैदा हुई मुमताज़ बचपन से ही फिल्मों में काम करना चाहतीं थीं और उनकी इसी चाहत के कारण उन्होंने बहुत कम समय में बहुत कुछ पा लिया। ग्यारह साल की उम्र में वह बाल कलाकार के रूप में फिल्म सोने की चिड़िया(1958) और मुझे जीने दो(1960) में काम करने लगीं थीं, सोलह साल की उम्र में वह हिट अभिनेत्री बन गयी, बाइसवें वर्ष में वह सुपरस्टार बन गयीं।
मुमताज़ की हीरोइन के रूप में पहली फ़िल्म ‘फौलाद’ (1963) थी। इसमें दारा सिंह हीरो थे। यह फ़िल्म सुपर हिट रही और इसके बाद मुमताज़ की दारा सिंह के साथ जोड़ी बन गयी। इन दोनों ने 16 फिल्मों में एक साथ काम किया। उसी समय उन्होंने दारा सिंह के भाई रन्धावा के साथ भी कई फिल्में कीं। इसमें से ज्यादातर स्टंट फिल्में थीं। चूंकि उस समय रोमांटिक फिल्मों का समय था और मुमताज़ स्टंट फिल्में कर रहीं थीं इस कारण उन्हें बी- ग्रेड फिल्मों की हीरोइन माना जाने लगा था। फलत: उनके साथ कोई भी हीरो काम नहीं करना चाहता था, पर इसमें दो राय नहीं कि मुमताज़ ने हिम्मत नहीं हारी। उनका वक्त बदला 1965 में आयी फ़िल्म मेरे सनम से। इस फिल्म में उनके काम की बहुत तारीफ़ हुई। इसके बाद उन्हें फ़िल्म मिली राम और श्याम(1967), जिसमें वह अभिनय सम्राट दिलीप कुमार के साथ रोमांस करते नज़र आयीं। इस फ़िल्म ने उन्हें एक बेहतरीन अभिनेत्री के रूप में सचमुच स्थापित कर दिया। उनपर फिल्माया इसका एक गाना- “मैं हूं साकी तू है शराबी शराबी…” काफी ‌मशहूर हुआ था। इसके बाद मुमताज फिल्म बूंद जो बन गयी मोती(1967) में जितेन्द्र के बाद उस समय के सुपरस्टार राजेश खन्ना के साथ फ़िल्म दो रास्ते (1969) मे आयीं जो सुपर हिट हुई । उन्होंने राजेश खन्ना के साथ एक के बाद एक कई ब्लॉकबस्टर फिल्में दीं। ये फिल्में थीं:- बंधन(1969), सच्चा झूठा(1970), दुश्मन(1970), रोटी(1974), आपकी कसम(1974), अपना देश(1972) और प्रेम कहानी(1975)।
यही नहीं मुमताज ने उस समय के प्रचलित लगभग सभी अभिनेताओं यथा- फिरोज खान, रन्धावा, मनोज कुमार, दिलीप कुमार, अजीत, संजीव कुमार, शैलेष कुमार, जितेंद्र, संजय खान, सुनील दत्त, विश्वजीत, दीपक कुमार, समीर खान, राजेंद्र कुमार, अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, विनोद खन्ना, महमूद, शशि कपूर, रणधीर कपूर, शत्रुघ्न सिन्हा आदि के साथ भी कई-कई फिल्में कीं और अपनी अभिनय प्रतिभा से फिल्मों को सफल बनाया।
कई लोग ऐसा भी कहते हैं कि राजेश खन्ना जब डांस सीक्वेंस में गलती कर देते थे तब मुमताज़ अपने शानदार परफॉर्मेंस से उस गलती को छुपा देती थीं। इन दोनों के ऊपर एक से बढ़कर एक गाने फिल्माए गए हैं, जिसमें से एक “जय जय शिव शंकर…” तो अमर गाना ही हो गया है और आज भी संगीत महफिलों व रियलिटी शोज में सुनने को मिल ही जाता है।
राजेश खन्ना के साथ कई हिट फिल्में देने के बाद ऐसे वे हीरो जो मुमताज के साथ काम नहीं करना चाहते थे वे भी मुमताज़ के साथ काम करने के लिए लालायित रहने लगे थे। शशिकपूर उनमें से एक थे। उन्होंने मुमताज़ से अपनी सुपरहिट फ़िल्म “चोर मचाये शोर(1974) में काम करने के लिए कहा था।
जब मुमताज एक बड़ी एक्ट्रेस बन गयीं तब कई कलाकारों के साथ उनके प्यार की कहानी भी गढ़ी गयी जो अपने मुकाम तक नहीं पहुंचे। इसकी वजह यह थी कि मुमताज फिल्मों से पैसा कमाने और अपने परिवार की जिम्मेदारी निभाने में बहुत व्यस्त थीं। फिल्म बूंद जो बन गयी मोती(1967) बनने के दौरान उनकी मां का देहान्त हो गया था, इसके बाद परिवार के खर्चे का बोझ उन्हीं पर था। वे सुबह भोर में उठकर रात नौ बजे तक काम करती थीं। इस दौरान उन्हें हीरो संजीव कुमार के साथ फिल्म खिलौना(1970) मिली जिसने उनके लिए सफलता का रास्ता दिखा दिया।
एक इंटरव्यू में मुमताज ने बताया था कि वह इस मामले में लकी थीं कि उनके कई साथी कलाकार उनसे शादी करना चाहते थे, लेकिन वह खुद आगे नहीं बढ़ीं क्योंकि उनके ऊपर पूरे परिवार की जिम्मेदारी जो थी और फिल्मों के बोझ के चलते उनके पास प्यार-मोहब्बत के लिए समय ही नहीं था।
पुरानी फिल्मों के समीक्षक व मेरे मित्र विजय सोहनी एक रोचक घटना का जिक्र करते हुए बताते हैं कि बात उस समय की है जब मुमताज फ़िल्म बंधे हाथ(1973) में अमिताभ बच्चन के साथ काम कर रही थीं और एक सुपर स्टार बन चुकी थीं पर अमिताभ बच्चन सुपर स्टार नहीं बने थे। उनकी ब्लॉकबस्टर फ़िल्म जंजीर(1973) निर्माणाधीन थी। फ़िल्म “बंधे हाथ” की शूटिंग के समय मुमताज़ मर्सिडीज कार से आती थीं और अमिताभ बच्चन एक खटारा फियट कार से आते थे। अमिताभ को मुमताज की मर्सिडीज कार बहुत अच्छी लगती थी। एक दिन शूटिंग के दौरान जब वे अपने दोस्तों से कह रहे थे कि देखना एक दिन मेरे पास भी ऐसी मर्सिडीज कार होगी तब यह बात मुमताज़ ने सुन ली। दूसरे दिन जब अमिताभ शूटिंग के बाद स्टूडियो के पार्किंग एरिया में आये तो उन्हें अपनी फियट कार नहीं दिखी। वहां मौजूद गॉर्ड ने बताया कि मुमताज आपकी कार ले गयी हैं और अपनी मर्सिडीज कार की चाबी आपको देने के लिए दे गयी हैं। उस चाबी के साथ एक पत्र भी था जिसमें मुमताज़ ने लिखा था कि आप जब तक चाहें तब तक इस कार को अपने पास रख सकते हैं…इतना बड़ा दिल था मुमताज़ का!
उनकी सहृदयता का एक और किस्सा मुझे याद आता है जिसका मैंने अपनी सद्य प्रकाशित किताब “मायानगरी : कुछ भूल गया कुछ याद रहा” में उल्लेख किया है और वह इस प्रकार है कि मुमताज निर्माता पहलाज निहलानी की अच्छी मित्र तो थीं ही उनकी मदद करने में भी पीछे नहीं रहती थीं।
बात उस समय की है जब राजेंद्र कुमार निर्मित फिल्म जुर्म(1989) जिसे डेविड ने निर्देशित किया था, बॉक्सऑफिस पर औंधे मुंह गिर पड़ी थी और उसका कुफल यह हुआ कि निर्माताओं ने डेविड धवन के घर का रास्ता ही छोड़ दिया था, लेकिन मुमताज ने पति के पास अमेरिका जाने से पहले डेविड को पहलाज की अगली फिल्म शोला और शबनम(1992) दिला दी जिसने डेविड की प्रतिभा को फिर सातवें आसमान तक ऊंचा कर दिया- इससे गोविन्दा, दिव्या भारती और अनुपम खेर (मेजर लाठी) को तो लाभ मिला ही पहलाज भी तमाम कर्जों से मुक्त हो गए थे।
फिल्म जगत के उस समय के लोग आज भी मुमताज के स्वभाव की तारीफ करते नहीं अघाते और उनके जन्मदिन पर बधाई जरूर देते हैं। कुछ साल पहले एक अफवाह उड़ी की मुमताज का निधन हो गया लेकिन उन्होंने खंडन किया कि वह बीमार जरूर थीं लेकिन मरी नहीं हैं।
अब अगर उनकी हाल-हवाल जाननी हो तो स्पष्ट करना है कि अपनी उम्र के छब्बीसवें साल में उन्होंने युगांडा के भारतीय मूल के अमरीकी बिजनेसमैन मयूर माधवानी से शादी कर फ़िल्मी दुनिया को छोड़ दिया था। हालांकि इस बीच जरूर वह कुछ दिनों के लिए मुम्बई आयीं और हीरो शत्रुघ्न सिन्हा के साथ डेविड धवन निर्देशित निर्माता पहलाज निहलानी की एक फिल्म आंधियां(1990) करने के अलावा एक टीवी सीरियल की कुछ शूटिंग और एक रियलिटी शो में शामिल हुईं। इन दिनों वह लंदन में अपनी बेटी नताशा के साथ रह रही हैं।

मुमताज की फिल्मी यात्रा‌
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सोने की चिड़िया(1958)
मुझे जीने दो, रुस्तम-ए-सोहराब, सेहरा(1963)
हर्कुलिस, सैमसन, सूरज, बॉक्सर, लुटेरा(1964)
मेरे सनम, राका, सिकन्दर-ए-आज़म, रुस्तम-ए-हिंद, खानदान, नीला आकाश, सन ऑफ हातिमताई, टार्जन एंड किंगकांग, टार्जन कम्स टू डेल्ही(1965)
चार दरवेश, डाकू मंगल सिंह, काजल, रुस्तम-ए-बगदाद, सावन की घटा, जवान मर्द, मुझे जीने दो, रुस्तम कौन(1966)
बूंद जो बन गयी मोती, आग, सीआईडी 999, पत्थर के सनम, राम और श्याम, अरेबियन नाइट, चंदन का पलना, दो दुश्मन, वो कोई और होगा(1967)
ब्रह्मचारी, मेरे हमदम मेरे दोस्त, गौरी, गोल्डन आइज, जंग और अमन, दुश्मन(1968)
आदमी और इन्सान, बंधन, दो रास्ते, जिगरी दोस्त, शर्त(1969)
भाई भाई, चाहत, दुश्मन, हिम्मत, खिलौना, मां और ममता, पति पत्नी, परदेसी, सच्चा झूठा(1970)
हरे रामा हरे कृष्णा, लड़की पसंद है, कठपुतली, मेला, उपासना(1971)
अपराध, अपना देश, धड़कन, गोमती के किनारे, रूप तेरा मस्ताना, शरारत, सुल्ताना डाकू, तांगेवाला(1972)
बंधे हाथ, झील के उस पार, लोफर, प्यार का रिश्ता, प्यार किये जा(1973)
आईना, आपकी कसम, चोर मचाए शोर, एक नारी एक ब्रह्मचारी, हमजोली, रोटी(1974)
लफंगा, नागिन, प्रेम कहानी(1975)
आंधियां (1990)

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