भगवान से निकटता के लिए सत्संग होना पहली शर्त है, लेकिन भगवान की कथा में वही पहुंच पाता है जिसका पुण्य प्रबल होता है।
उक्त सिद्धांत लखनऊ के सुशांत गोल्फ सिटी , दयालबाग में चल रही नौदिवसीय श्री राम कथा के सातवें दिन पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने व्यासपीठ से कहीं।
सरस् श्रीराम कथा गायन के माध्यम से भारतीय और पूरी दुनिया के सनातन समाज में अलख जगाने के लिए जनप्रिय कथावाचक प्रेमभूषण जी महाराज ने श्री सीताराम विवाह के आगे के प्रसंगों का गायन करते हुए कहा कि भगवान और भगत के बीच भक्ति का ही एकमात्र नाता होता है। नौ प्रकार के भक्ति की चर्चा नवधा भक्ति के प्रसंग में वर्णित है। इसमें से कोई भी एक भक्ति पथ को पकड़ कर के मनुष्य अपना जीवन सँवार सकता है। भगवान और सत्कर्मों में जिसकी जितनी श्रद्धा होती है, उतना ही हमारा कल्याण भी होता है।
प्रेमभूषण जी महाराज ने कहा कि मनुष्य मात्र की दिमागी कसरत है जाति-पाती के भेद। भगवान ने कभी भी, कहीं भी जात-पात भेद को बढ़ावा देने की बात नहीं करी है। श्रीरामचरितमानस में इस बात का बार-बार प्रमाण आया है। भगवान ने केवट जी, शबरी जी और निषाद जी को जो सौभाग्य प्रदान किया वह अपने आप में यह बताने के लिए पर्याप्त है कि भगवान कभी भी भगत में जात-पात का भेद नहीं देखना चाहते हैं।
महाराज जी ने कहा कि धरती के किसी भी मनुष्य के लिए भगवान का गुणगान करने के लिए जाति और कुल का कोई महत्व नहीं होता है। हमारे सनातन सद्ग्रन्थों में यह बार-बार बताया गया है कि जो कोई भी चाहे प्रभु को जप ले और अपना जीवन धन्य कर ले। कोई भी गा ले, फल अवश्य मिलेगा।
महाराज श्री ने कहा कि मनुष्य का पुनर्जन्म उसकी अपनी ही किसी एक ज्ञानेंद्रिय के विकारों के कारण ही होता है। हमारी पांच ज्ञानेंद्रिय हमको भटकाती रहती हैं। जब हमारी ज्ञानेंद्रियां भगवतोन्मुख होने लगती हैं तभी हमारा कल्याण होना शुरू हो जाता है। जब हम नित्य भगवत दर्शन करते हैं, भगवान का दर्शन करते हैं तो हमारी जिह्वा भगवान में रम जाती है। महाराज श्री ने कहा कि हमें जीवन में कुछ देर शांत बैठने का भी अभ्यास करना चाहिए। जब हम धीरे-धीरे इसका अभ्यास करते हैं तो हमें अपने अंदर से ऊर्जा का स्रोत पता चलने लगता है। हम अंतर से प्रकाशित होना शुरू कर देते हैं।
महाराज श्री ने कहा कि भारत की भूमि देवभूमि है, धर्म की भूमि है । यहां धर्म का पालन करने वाले ही सदा सुखी रहते हैं और अधर्म पथ पर चलने वाले लोगों को दुख भोगने ही पड़ते हैं। हमारी संस्कृति धर्म पर आधारित है जैसे तैसे नहीं चलती है। धर्म और परंपराओं का सब विधि से पालन होना चाहिए और तभी समाज का कल्याण संभव है।
महाराज श्री ने कहा कि मनुष्य अपने परिवार के लोगों के लिए ही जीवन में गलत कार्य करता है धन उपार्जन करने के लिए। लेकिन उसे यह सोचने की आवश्यकता होती है कि कोई इसके फल में उसका साथ देने वाला नहीं है फल तो उसको स्वयं अकेले ही खाना पड़ता है।
बेईमानी का संग्रह टिकता नहीं है और ना ही उससे जीवन में कोई सुखी हो पाता है। अगर मनुष्य को जीवन में सुख चाहिए तो वह उसे सिर्फ अपने सत्कर्म से ही प्राप्त हो सकता है। अपने परिश्रम से अर्जित धन से जो व्यक्ति अपना जीवन व्यतीत करता है वही सुखी रह पाता है।
पूज्यश्री ने कहा कि भगवान अविकारी हैं और मनुष्य अर्थात जीव विकारों से परिपूर्ण है। भगवान और मनुष्य में यही मूल अंतर है। अपने कर्मों के माध्यम से जीव अगर अपने विकारों से रहित हो जाता है या विकारों को कम करना शुरू कर देता है तो वह भगवान के तुल्य होने लगता है। निरंतर सतकर्मों में रहने वाला व्यक्ति ही विकारों से छुटकारा पाता है। पूज्यश्री मानव मात्र के लिए यह उचित है कि वह कहीं भी विकारों की न चर्चा करें और ना ही किसी से भी विकारों की चर्चा सुने। रामचरितमानस में युवाचार्य लक्ष्मण जी ने निषादराज को यह संदेश विस्तार से बताया था।
महाराज श्री ने कहा कि भगवान को केवल और केवल प्रेम ही प्यारा है बार-बार मानस जी में इसका इसकी चर्चा आई है। यह जरूरी नहीं है कि भगवान भी हम से प्रेम करें हमें भगवान से अवश्य प्रेम करना चाहिए अगर हम भगवान से प्रेम की अपेक्षा करते हैं तो यह व्यापार हो जाएगा लेनदेन का व्यापार। भगवान से बदले में कुछ चाहना तो व्यापार ही है।
पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने कहा कि जानबूझ कर किया गया अपकर्म या पाप मनुष्य का पीछा नहीं छोड़ता है और उसका फल हर हाल में भोगना ही पड़ता है। अगर ऐसा नहीं होता तो लोग रोज-रोज पाप करते और गंगा जी में नहा कर पाप धो लेते। फिर तो धरती पर कोई पापी बचता ही नहीं। सनातन सदग्रंथों में हर बात की व्याख्या की गई है, हमें इन पर विश्वास रखते हुए जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए।
इस कथा के आयोजक उत्तर प्रदेश के परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह की पूजनीय माता जी और दयाल ग्रुप के चेयरमैन राजेश सिंह दयाल और खुशहाली फाउंडेशन के चेयरमैन सोनू सिंह ने व्यास पीठ पर उपस्थित भगवान का पूजन किया और भगवान की आरती की। कई विशिष्ट अतिथि कथा में उपस्थित रहे। बड़ी संख्या में उपस्थित श्रोतागण को महाराज जी के द्वारा गाए गए दर्जनों भजनों पर झूमते हुए देखा गया।